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लेखनी कहानी -23-Mar-2022 बेचैन गिद्ध

गिद्धों में भयंकर बेचैनी थी । सारे गिद्ध इकट्ठे हो गए थे । सब मिलकर "मारो मारो" का शोर मचा रहे थे । इतने बेचैन हो गये थे सारे गिद्ध कि सामने वाले का नुक़सान करने के चक्कर में अपना ही नुकसान किए जा रहे थे । गजब का प्रयास कर रहे हैं ये गिद्ध । पिछले बीस सालों से कमर कसकर डटे हुए हैं अपने मोर्चे पर । हर बार मुंह की खाते हैं लेकिन जरासंध की तरह हर बार दो फाड़ हो जाने के बाद भी जुड़ जाते हैं और दुगने उत्साह व परिश्रम से अपने मिशन पर लग जाते हैं । 
सफेद दाढ़ी वाला शेर भी कमाल का है । पिछले बीस वर्षों से वह इनके खिलाफ लड़ रहा है लेकिन उसके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं है । और तो और उसके शब्दों में भी कोई तल्खी नहीं है ‌‌अपने कौशल , वाक्पटुता, परिश्रम, बुद्धि, अनुभव और समझ के कारण ये सारे गिद्ध मिलकर भी उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रहे हैं । जबसे सफेद दाढ़ी वाला शेर जंगल का राजा बना है तब से इन गिद्धों ने रात दिन एक कर दिया दाढ़ी वाले को मारकर या जीवित मांस नोचने के लिए । लेकिन यह बूढ़ा शेर कलाबाजियां खिलाने में माहिर हैं । सभी गिद्ध उसके आगे पीछे खूब चोंच मारते हैं । मगर अफसोस , नोंचना तो दूर , उसे छू भी नहीं सके हैं अभी तक । एक एक करके सारे किले हारते जा रहे हैं ये गिद्ध और वह बूढ़ा शेर ? वह लगातार जीतता चला जा रहा है । इन गिद्धों की यही परेशानी है । वे हार गए इसका मलाल नहीं है उन्हें , मगर बूढ़ा शेर हर बार कैसे जीत जाता है ? यह एक पहेली ऐसी है जो अबूझ है अभी तक । यद्यपि एक से बढ़कर एक घाघ गिद्ध बैठे हैं  मगर दांव किसी का भी चल नहीं पा रहा है । हर बार धूल फांक कर बेइज्जती करवाकर बैठ जाते हैं । बेशर्म इतने हैं कि शर्म नाम की कोई चीज इन्होंने कभी देखी ही नहीं । 

ऐसा नहीं है कि ये सारे गिद्ध एक ही प्रजाति के हैं । अलग अलग प्रजातियों से आते हैं ये ।  चूंकि सारे गिद्धों का उद्देश्य एक ही है , बूढ़े शेर का शिकार करना , उसका मांस नोंचना । इसके लिए ये गिद्ध किसी भी हद तक गिर सकते हैं । और ये लगातार गिर भी रहे हैं । मगर अगले ही पल फिर से लडने को तैयार हो जाते हैं । पहले इन गिद्धों की नस्ल पहचान लेते हैं , फिर बात करेंगे । 

इन गिद्धों की एक नस्ल है "सफेद टोपी" । इस नस्ल के गिद्ध बहुत शातिर , धूर्त, मक्कार होते हैं । येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना फिर उस पर अपना कब्जा जमाए रखना और अपने बेटे , पोते और आगे आने वाली पीढ़ियों को सत्ता में भागीदार बनाना ही इनका मुख्य उद्देश्य है । इन्होंने अपने अपने दल बना रखे हैं जिनके मुखिया उसी परिवार के लोग हैं । परिवार के अलावा और किसी को योग्य मानते ही नहीं हैं इस किस्म के गिद्ध । पीढ़ियों से मांस नोंच रहे हैं और जश्न मना रहे हैं । 

दूसरी किस्म के गिद्ध हैं भांड प्रकृति वाले । आजकल इन्हें मीडिया या पत्रकार भी कहते हैं । इनका एक ही काम है "अपने मालिक" के पक्ष में माहौल बनाना । कहने को तो ये अपने आपको निष्पक्ष कहते हैं मगर इनसे अधिक पक्षपाती और कोई  भी नहीं है । झूठी खबरें फैलाकर लोगों को गुमराह करना कोई इनसे सीखे । अराजकता फैलाना ही इनका काम रह गया है । दलाली करने में महारथ हासिल कर ली है इन्होंने । अपने स्टूडियो में ही मंत्री बनाने का ठेका ले लेते हैं ये लोग । इनको बस पैसा और सत्ता में दखल चाहिए । इतने ईमानदार हैं ये कि ये रातों-रात खरबपति बन गए । इनकी ईमानदारी, निष्पक्षता और जनसेवा को सलाम । सफेद टोपी वाले गिद्धों की "गुलामी" करते करते इन्होंने अपना कद बहुत ऊंचा कर लिया है । 

तीसरी प्रजाति के गिद्ध कुछ "इंटेलेक्चुअल" हैं । खिचड़ी बाल , फ्रेंच कट दाढ़ी , सुनहरी फ्रेम का चश्मा , आंखों में धूर्तता, चेहरे पर मक्कारी की लकीरें लिए हुए विभिन्न क्षेत्रों में फैले पसरे हैं । आम बोलचाल की भाषा में लोग इनको बुद्धिजीवी कहते हैं । बॉलीवुड , कला के क्षेत्र में , भूतपूर्व प्रशासनिक, पुलिस, न्यायिक अधिकारी वगैरह क्षेत्र में पाए जाते हैं । सारी बुद्धि का ठेका इन्होंने ही ले रखा है । बाकी तो खाली दिमाग लेकर घूम रहे हैं । कला के नाम पर, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर एक खास "एजेंडा" चलाते आ रहे हैं ये । जब इनकी पूंछ पर पैर रख दिया तो सांप की तरह फुंफकारने लगे हैं और विषवमन कर रहे हैं । 

"स्वयंसेवी संगठन" जिन्हें "झोला छाप" गिद्ध भी कहते हैं , देशी विदेशी खैरात पर पल रहे हैं । समाज सेवा के नाम पर धर्म परिवर्तन करने, देश को खोखला करने और तोड़ने के षड्यंत्र में लगे हुए हैं ये । किसान आंदोलन के नाम पर "खालिस्तानी आंदोलन" चलाने वाले "एसएफजे" जैसे उग्रवादी संगठन वाले लोग इस श्रेणी में आते हैं । कोई किसान संगठन तो कोई मजदूर संगठन तो कोई नारीवादी संगठन तो कोई दलित संगठन के नाम से अपने अपने संगठन बनाकर देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं । 

एक प्रकार के गिद्ध और हैं जो न्यायपालिकाओं में बैठे हुए हैं । जनहित याचिकाओं द्वारा बूढ़े शेर के गले में फंदा डालकर उसका मांस नोचने की फिराक में रहते हैं ये । एक आतंकवादी को बचाने के लिए रात को बारह बजे कोर्ट खुलवाते हैं । अवकाश के दिन में कोर्ट खुलवाकर नक्सलियों, उग्रवादियों, अपराधियों को जमानत दिलवाने का धंधा करते हैं । 

ये सब प्रकार के गिद्ध बुरी तरह से बेचैन हैं । वैसे इनमें से अधिकतर तो पिछले बीस सालों से लगे हुए हैं मगर आलम यह है कि इन्होंने शेर को रोकने की जितनी कोशिश की शेर उतना अधिक मजबूत हुआ । सन् 2014 में जब गिद्धों का राज समाप्त हुआ और जंगल पर शेर का कब्जा हो गया तब से ही गिद्ध , लोमड़ी, गीदड़, सांप, बिच्छू वगैरह सब परेशान हैं । सन् 2019 में जब शेर दुबारा राजा बन गया तब से इनकी बेचैनी का आलम ऐसा हो गया है कि इनको न दिन में चैन है और न रात को आराम । दिन रात षड्यंत्र रचने में मशगूल रहते हैं । 

इन सब गिद्धों ने एक को अपना राजा बना रखा है । कहते हैं कि कभी इस "राजा" की तूती बोला करती थी । इस राजा की खैरात पर ही मीडिया, बुद्धिजीवी, झोलाछाप और कोर्ट फिक्सर गिद्ध पल रहे थे । अब ये सारे गिद्ध अपने मालिक के लिए जी जान से जुटे हुए हैं । कभी CAA के नाम पर अफवाह उड़ा कर जंगल में अराजकता फैला रहे थे । दंगे करवा रहे थे । कभी कोरोना संकट में भी जनता को भड़का रहे थे , मजदूरों को उकसा रहे थे । कभी किसानों की भलाई का नाटक करके किसानों के पेट पर लात मार रहे थे । जनता को गुमराह कर रहे थे । भारत के झंडे का गणतंत्र दिवस पर अपमान कर रहे थे । 

एक एक करके जंगल के सारे सूबे इनके हाथ से निकलते जा रहे हैं और ये हाथ मलने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते हैं । ऐसी मजबूरी कभी नहीं देखी इन्होंने । इन्होंने तो केवल सत्ता की मलाई ही खाई थी अब तक । अब इनको "रोजे" रखने पड़ रहे हैं , तो ये बात कैसे हजम हो । लेकिन ये एक ऐसे दल-दल में धंस गए हैं कि उससे निकलने की जितनी भी कोशिश ये करते हैं उतने ही ज्यादा दलदल में धंसते जाते हैं । 

बिहार सूबे में जब चुनाव हो रहे थे तब कोरोना काल था । चुनाव आयोग ने सब दलों से "वर्चुअल रैली" करने के लिए कहा तो सब विपक्षी दलों ने साफ इंकार कर दिया और व्यक्तिगत रैलियों पर ही जोर दिया । केवल बूढ़े शेर के लोगों ने ही वर्चुअल रैली के लिए कहा । सब दलों के सहमत नहीं होने के कारण चुनाव आयोग ने व्यक्तिगत रैलियों को इजाजत दे दी । 

अब इन सबको लग रहा है कि बिहार के बाद बंगाल पर भी बूढ़ा शेर काबिज होने जा रहा है तो उसको रोकने के लिए "कोरोना" का कोहराम मचाया जा रहा है । बूढ़े शेर की रैलियों को दोषी ठहराया जा रहा है । मगर ये गिद्ध इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं । इनको लगता है कि "कुकुरहाव" करने से जनता को गुमराह किया जा सकता है । मगर अब जमाना बदल गया है । अब लोग खैराती चैनल नहीं देखते । जो चैनल सबसे तेज होने का दावा करते थे वे तो सबसे "फेक" चैनल निकले । जनता में उनकी असलियत उजागर हो गई । मगर बेशर्म इतने हैं कि चुल्लू भर पानी में डूबने के बाद भी जिंदा पड़े हैं । 

सुना है कि अब ये गिद्ध इस नीचता पर उतर आए हैं कि ऑक्सीजन के सिलैण्डरोंं की  आपूर्ति में बाधा उत्पन्न करने के लिए तथाकथित किसान नेताओं को काम में ले रहे हैं । समझ में नहीं आता है कि ये अभी और कितना नीचे गिरेंगे । वैसे एक बात तो तय है कि गिद्धों से जनता को भलाई की कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए । इनका काम मांस नोचने का है और ये काम ऐसे गिद्ध सदियों से करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे । 

मगर अफसोस तो यह है कि इनकी बेचैनी का फिलहाल कोई इलाज दिख नहीं रहा है । जब तक बूढ़ा शेर मौजूद है जंगल के सभी जानवर सुरक्षित हैं और वह शेर इन गिद्धों की किसी भी चाल को सफल नहीं होने देगा । तो इन गिद्धों की बेचैनी बरकरार ही रहने वाली है । हो सकता है कि अभी और बढ़े । इन्होंने चीन और पाकिस्तान से तो हाथ मिला ही रखा है , अब शायद रूस और कुछ पश्चिम के देशों के साथ मिलकर तख्ता पलट का षड्यंत्र रच सकते हैं । 

हरिशंकर गोयल "हरि"
22.4.21 

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

24-Mar-2022 06:13 PM

बहुत शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

25-Mar-2022 03:11 AM

💐💐🙏🙏

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Renu

23-Mar-2022 08:05 PM

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Mar-2022 10:38 PM

💐💐🙏🙏

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Gunjan Kamal

23-Mar-2022 01:13 PM

👏👌🙏🏻

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Hari Shanker Goyal "Hari"

23-Mar-2022 05:51 PM

💐💐🙏🙏

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